पौराणिक आख्यानों में नायक के रूप में विख्यात बाणासुर की राजधानी के रूप में बारसूर के नामकरण को समीकृत किया गया है। पूर्व मध्यकालीन राजधानी नगर के रूप में बारसूर का प्रारंभ से ही गौरवशाली इतिहास रहा है। जिसके प्रमाण के रूप में 11वीं सदी ई. में प्राप्त नाग शासक सोमेश्वर देव की महारानी गंग महादेवी के अभिलेख कसे प्रस्तुत कर सकते हैं। यहां पर प्रतिष्ठित विश्वविख्यात एवं दुनिया के तीसरे सबसे बड़े गणेश की प्रतिमाएं, दो गर्भगृह युक्त एवं अपने स्तंभ स्थापत्य से चमत्कृत कर देने वाला बत्तीसा मंदिर, मामा-भांजा मंदिर समेत चंद्रादित्य मंदिर के साथ-साथ सरोवरों एवं सतधारा जैसे नैसर्गिक जल क्रीड़ा स्थलों के कारण यह पुरास्थल कला संस्कृति एवं ऐतिहासिक दृष्टि से पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है।
विश्व प्रसिद्ध है गणेश मंदिर बारसूर में स्थित बत्तीसा मंदिर के समीप स्थित युगल गणेश प्रतिमा न केवल अपने आकार-प्रकार एवं स्थापत्य बल्कि मनोसिद्धि पूर्ण करने जैसी धारणाओं के कारण छत्तीसगढ़ के साथ-साथ समूचे विश्व में विख्यात है। ग्रेनाइट पत्थर को बारीक तराश कर बनाई गई यह प्रतिमाएं बेहद ही अलौकिक एवं अद्वितीय है। बड़ी प्रतिमा की लंबाई 7 फीट है जबकि दूसरे की लंबाई 5.5 फीट है। बड़ी प्रतिमा में गणेश को चौकी पर बैठे दिखाया गया है जिनके बाएं हाथ में मोदक पात्र तो दाएं में अक्षमाला है। उन्हें लंबे कान, खुली आंखे, बाहर निकले दो दांत, हाथों में कंगन, पांवों में पैंजनी एवं शरीर में यज्ञोपवीत धारण किए हैं। गणेश की दूसरी प्रतिमा एकदंत प्रतिमा है जिसके दाएं हाथ में परशु है। दोनों ही प्रतिमाएं मंदिर के मलबे से मिली है। जो कि 11वीं एवं 12वीं शताब्दी की मानी जाती है। प्राचीनता की दृष्टि से यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है।
भगवान शिव को समर्पित मामा भांजा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है मामा-भांजा मंदिर। जिसका पूर्वाभिमुख भूमिज शैली में निर्मित है। इस मंदिर का निर्माण गंगवंशी राजकुमार ने कराया था। मंदिर के मुख्य भागों में गर्भगृह एवं अंतराल है। मंदिर का शिखर जो कि उड़ीसा शैली में निर्मित है जो पूर्णतः सुरक्षित अवस्था में है। मंदिर के ललाटबिंब पर गणेश की प्रतिमा अंकित है। मंदिर की प्रसाद पीठिका तथा वेदिबंध पत्रावली एवं कमल पुष्पों से अलंकृत है। मंदिर के बाह्य जंघा भाग एवं बाह्य भित्ति भाग पर रथिकाएं हैं। जिन पर कभी विभिन्न देवी- देवताओं की मूर्तियां शोभायान हैं।
उत्कृष्ट बत्तीसा मंदिर मूलतः इस मंदिर का नाम शिववीर सोमेश्वर मंदिर था। जिसका निर्माण नागवंशीय शासक सोमेश्वर की रानी महादेवी ने 1030 ईं. में संभवतः सोमेश्वर की स्मृति में करवाया था। बारसूर प्रवेश करते ही बाईं ओर यह मंदिर स्थित है। वस्तुतः यह मंदिर युगल है। इसमें गर्भगृह एवं सामने स्तभों पर आधारित मंडप है। बत्तीश पाषाण स्तंभों पर आधारित होने के कारण ही इसे बत्तीसा मंदिर कहते हैं।
दूरी- जगदलपुर से 75 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर गीदम से 20 किमी दूर स्थित है बारसूर। इंद्रावती नदी के तट पर स्थित है प्राचीन नगरी बारसूर । बारसूर को नागवंशीय शासकों की राजधानी होने का गौरव प्राप्त रहा है। बारसूर एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
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