वीर सावरकर: स्वतंत्रता संग्राम के एक बहुआयामी योद्धा
विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें आमतौर पर स्वातंत्र्यवीर सावरकर या वीर सावरकर के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख और विवादास्पद व्यक्तित्व रहे हैं। उनका जन्म 28 मई 1883 को हुआ और उनका जीवन 26 फरवरी 1966 को समाप्त हुआ। सावरकर की कहानी अद्वितीय है, जिसमें उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों, राजनीतिक दृष्टिकोण, और दार्शनिक विचारों का संगम प्रस्तुत किया।
प्रारंभिक जीवन और क्रांतिकारी गतिविधियाँ
सावरकर का क्रांतिकारी जीवन बहुत पहले शुरू हुआ, जब वे एक हाई स्कूल के छात्र थे। उन्होंने अपने भाई के साथ अभिनव भारत सोसाइटी नामक एक गुप्त संगठन की स्थापना की। यह संगठन ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित था। सावरकर की क्रांतिकारी गतिविधियाँ फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे में भी जारी रहीं, जहाँ उन्होंने और उनके सहयोगियों ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ अपनी आवाज उठाई।
इंग्लैंड में अध्ययन और इंडिया हाउस
सावरकर की क्रांतिकारी यात्रा उन्हें कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड ले गई, जहाँ उन्होंने इंडिया हाउस और फ्री इंडिया सोसाइटी जैसे क्रांतिकारी संगठनों से जुड़कर अपनी गतिविधियों को और तीव्र किया। उन्होंने "द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस" नामक एक पुस्तक लिखी, जो 1857 के भारतीय विद्रोह पर आधारित थी। इस पुस्तक को ब्रिटिश अधिकारियों ने प्रतिबंधित कर दिया, जिससे सावरकर की ख्याति और बढ़ गई।
गिरफ्तारी और कारावास
1910 में सावरकर को ब्रिटिश अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया और भारत भेज दिया गया। यात्रा के दौरान, उन्होंने मार्सेल्स बंदरगाह पर भागने का प्रयास किया, लेकिन फ्रांसीसी अधिकारियों ने उन्हें ब्रिटिशों को सौंप दिया। भारत लौटने पर, सावरकर को दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के सेलुलर जेल में भेज दिया गया। वहाँ उन्होंने कई दया याचिकाएँ लिखीं और 1921 में रिहा हो गए, जब उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों को त्यागने का वादा किया।
हिंदुत्व और हिंदू महासभा
रिहाई के बाद, सावरकर रत्नागिरी में रहे और 1937 के बाद व्यापक यात्रा करना शुरू किया। उन्होंने हिंदू महासभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और हिंदुत्व (हिंदूपन) की विचारधारा को प्रचारित किया। सावरकर ने हिंदुत्व को भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा का समर्थन किया और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया।
महात्मा गांधी की हत्या और सावरकर का आरोप
1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद, सावरकर को सह-साजिशकर्ता के रूप में आरोपित किया गया, लेकिन सबूतों की कमी के कारण अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। इस घटना ने सावरकर की छवि को और विवादास्पद बना दिया।
सावरकर की विरासत
1998 में भाजपा के सत्ता में आने और 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के आने के बाद सावरकर की विरासत ने फिर से चर्चा में प्रवेश किया। आज भी, सावरकर के विचार और उनकी क्रांतिकारी गतिविधियाँ भारतीय राजनीति और समाज में बहस का विषय बनी हुई हैं।
निष्कर्ष
वीर सावरकर का जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनकी बहुआयामी सोच और क्रांतिकारी गतिविधियों ने भारतीय समाज और राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। चाहे आप उनके विचारों से सहमत हों या नहीं, यह स्पष्ट है कि सावरकर का योगदान और उनकी विरासत भारतीय इतिहास में अमिट है।

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