नरेंद्र मोदी: वादे और वास्तविकता के बीच का सफर
भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी का नाम एक ऐसे नेता के रूप में उभरा है, जिन्होंने देश को नई दिशा देने का दावा किया। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने कई बड़े वादे किए, जिनमें से कुछ को पूरा करने का दावा किया गया, जबकि कई वादे अभी भी अधूरे हैं। आज हम उनके कुछ प्रमुख वादों और उनकी वास्तविकता पर चर्चा करेंगे।
1. आपराधिक मामलों में सुधार का वादा
2013 की एक चुनावी रैली में मोदी ने कहा था कि विधानसभा और संसद में चुने गए नेताओं के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों को सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक साल के भीतर निपटाया जाएगा। उन्होंने कहा था कि जो अपराधी हैं, वे जेल जाएंगे और राजनीति में एक शुद्धि अभियान चलेगा। हालांकि, 2014 और 2019 के चुनावों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को सबसे अधिक टिकट दिए गए। यह स्पष्ट है कि यह वादा पूरा नहीं हुआ।
2. रुपए की गिरती कीमतों पर चिंता
2012 में मोदी ने कहा था कि रुपए की कीमतें इतनी तेजी से नहीं गिर सकतीं। उस समय डॉलर के मुकाबले रुपया 55 के आसपास था। लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, अप्रैल 2024 तक रुपया 83 तक गिर गया। यह सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार ने रुपए की गिरती कीमतों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाए?
3. पेट्रोल की कीमतों पर वादे
2013 में मनमोहन सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि की थी, जिस पर मोदी ने आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि पेट्रोल की कीमतें कम की जानी चाहिए। लेकिन मोदी सरकार में पेट्रोल की कीमतें ₹100 प्रति लीटर तक पहुंच गईं। हालांकि, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल की कीमतें गिरीं, तो मोदी ने इसका श्रेय लिया। लेकिन जब कीमतें फिर से बढ़ीं, तो इस पर चुप्पी साध ली गई।
4. स्मार्ट सिटी और आदर्श ग्राम योजना
मोदी ने 100 स्मार्ट सिटीज बनाने का सपना दिखाया था। उन्होंने कहा था कि ये शहर देश के विकास का इंजन बनेंगे। लेकिन आज तक यह योजना अपने लक्ष्य से काफी दूर है। इसी तरह, सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत सांसदों को गांव गोद लेने का निर्देश दिया गया था। लेकिन इस योजना का भी कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया। कई सांसदों ने इस योजना को गंभीरता से नहीं लिया।
5. रोजगार के वादे
2014 के चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने वादा किया था कि वे 10 करोड़ युवाओं को रोजगार देंगे। लेकिन आज देश में बेरोजगारी की दर 8% के आसपास है। यूपीएससी और एसएससी जैसी परीक्षाओं में वैकेंसी की संख्या लगातार घट रही है। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं।
6. किसानों की आय दोगुनी करने का वादा
मोदी ने 2016 में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था। उन्होंने कहा था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। लेकिन आज तक इस वादे को पूरा नहीं किया जा सका है। किसानों की आय में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है, और कृषि क्षेत्र में संकट बना हुआ है।
7. आधार कार्ड पर उलटफेर
मोदी ने एक समय आधार कार्ड को फिजूल बताया था और इस पर खर्च किए गए पैसे का हिसाब मांगा था। लेकिन आज आधार कार्ड को हर सरकारी योजना से जोड़ दिया गया है। बिना आधार कार्ड के कोई भी काम कराना मुश्किल हो गया है। यह मोदी के विरोधाभासी रुख को दर्शाता है।
8. चीन के साथ संबंध
मोदी ने चीन के खिलाफ मजबूत रुख अपनाने का वादा किया था। लेकिन लद्दाख में चीन की घुसपैठ और भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद भी सरकार ने चीन के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इस मामले में सरकार की नीति अस्पष्ट बनी हुई है।
निष्कर्ष
नरेंद्र मोदी ने देश को नई दिशा देने के लिए कई बड़े वादे किए, लेकिन इनमें से कई वादे अभी भी अधूरे हैं। उनके कार्यकाल में कुछ सुधार हुए हैं, लेकिन कई मोर्चों पर निराशा भी हाथ लगी है। आने वाले समय में यह देखना होगा कि क्या मोदी सरकार इन अधूरे वादों को पूरा कर पाती है या नहीं। देश की जनता को यह तय करना है कि वे इन वादों को गंभीरता से लें या नहीं।
**नरेंद्र मोदी का सफर वादों और वास्तविकता के बीच का सफर है, और यह सफर अभी खत्म नहीं हुआ है।**
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