संयासी बिराथू: एक विवादास्पद व्यक्तित्व का परिचय
संयासी बिराथू, जिन्हें अशिन वीराथु (Ashin Wirathu) के नाम से भी जाना जाता है, एक म्यांमार (बर्मा) के बौद्ध भिक्षु हैं, जो अपनी कट्टरवादी विचारधारा और विवादास्पद बयानों के लिए विश्व भर में चर्चा में रहे हैं। वे म्यांमार में बौद्ध राष्ट्रवाद के प्रमुख चेहरों में से एक माने जाते हैं और उनकी गतिविधियों ने न केवल उनके देश में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहस छेड़ दी है। कुछ लोग उन्हें "महात्मा" कहकर सम्मान देते हैं, तो कुछ उन्हें हिंसा और असहिष्णुता फैलाने वाला मानते हैं। इस ब्लॉग में हम उनके जीवन, विचारधारा और प्रभाव के बारे में संक्षेप में जानेंगे।
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
अशिन वीराथु का जन्म 10 जुलाई 1968 को म्यांमार के मांडले क्षेत्र में हुआ था। उनका मूल नाम नील विन (Ne Win) था। कम उम्र में ही वे बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुए और एक भिक्षु के रूप में अपना जीवन शुरू किया। शुरुआती दिनों में वे एक सामान्य बौद्ध भिक्षु थे, जो धार्मिक शिक्षा और ध्यान में समय बिताते थे। लेकिन 2000 के दशक में उनकी विचारधारा में बदलाव आया, जिसने उन्हें एक अलग पहचान दी।
विचारधारा और 969 आंदोलन
वीराथु ने 969 आंदोलन की शुरुआत की, जो बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने और म्यांमार में मुस्लिम समुदाय, खासकर रोहिंग्या मुसलमानों, के खिलाफ एक आंदोलन था। इस आंदोलन का नाम बौद्ध धर्म के तीन प्रमुख तत्वों—बुद्ध, धम्म (धर्म), और संघ—के प्रतीकात्मक अंकों (9, 6, 9) से लिया गया था। उनका दावा था कि म्यांमार की बौद्ध संस्कृति और पहचान को इस्लाम से खतरा है। उन्होंने मुस्लिम समुदाय को "पागल कुत्ते" जैसे अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया और बौद्धों से उनके साथ सख्ती से निपटने का आह्वान किया।
उनके इस रुख ने म्यांमार में धार्मिक तनाव को बढ़ावा दिया। 2012 और उसके बाद रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा में उनकी भूमिका को लेकर उन पर गंभीर आरोप लगे। हालांकि, वीराथु ने हमेशा यह कहा कि वे हिंसा का समर्थन नहीं करते, बल्कि केवल अपने धर्म और देश की रक्षा करना चाहते हैं।
विवाद और कानूनी कार्रवाई
वीराथु के भड़काऊ भाषणों की वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 2003 में उन्हें हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और 9 साल की सजा सुनाई गई, हालांकि 2012 में उनकी रिहाई हो गई। इसके बाद भी उनके खिलाफ कार्रवाइयां जारी रहीं। 2017 में म्यांमार सरकार ने उनके भाषणों पर प्रतिबंध लगा दिया, और 2019 में उनके खिलाफ फिर से गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ। वे कई बार भूमिगत भी रहे हैं।
समर्थन और आलोचना
वीराथु के समर्थक उन्हें एक नायक मानते हैं, जो बौद्ध धर्म और म्यांमार की संस्कृति को बचाने के लिए लड़ रहे हैं। उनके प्रशंसक कहते हैं कि "जो काम अमेरिका, फ्रांस, भारत, रूस कोई नहीं कर पाया, वो बर्मा के वीराथु ने कर दिखाया।" उनका मानना है कि वीराथु ने बौद्ध बहुसंख्यक समाज को एकजुट करके देश में कथित "बाहरी खतरे" से निपटने का रास्ता दिखाया।
दूसरी ओर, मानवाधिकार संगठन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय उनकी कट्टरता की कड़ी आलोचना करते हैं। उन्हें "द बौद्ध बिन लादेन" तक कहा गया है, क्योंकि उनके भाषणों को रोहिंग्या संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, जिसमें लाखों लोग विस्थापित हुए और हजारों की मौत हुई।
भारत से संबंध
भारत में कुछ लोग वीराथु को एक प्रेरणा के रूप में देखते हैं और मानते हैं कि भारत को भी ऐसे "संयासी" की जरूरत है जो कथित खतरों से देश को बचा सके। सोशल मीडिया पर उनके समर्थन में पोस्ट देखे जा सकते हैं, जहां उन्हें "महात्मा" कहकर संबोधित किया जाता है। हालांकि, भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में उनकी विचारधारा को लेकर मतभेद भी गहरे हैं।
निष्कर्ष
संयासी बिराथू एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो अपने कट्टरवादी रुख के कारण हमेशा चर्चा में रहते हैं। वे एक तरफ धार्मिक राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं, तो दूसरी तरफ असहिष्णुता और हिंसा के आरोपों से घिरे हुए हैं। उनका जीवन और कार्य हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि धर्म और राष्ट्रवाद के बीच की रेखा कहां खींची जानी चाहिए। क्या वे वास्तव में एक "महात्मा" हैं या एक विवादास्पद शख्सियत? यह सवाल हर व्यक्ति के अपने नजरिए पर निर्भर करता है।
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