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भारत के प्रथम महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जामवाल

भारत के प्रथम महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जामवाल

𝑰𝒎𝒎𝒐𝒓𝒕𝒂𝒍 𝑫𝒐𝒈𝒓𝒂 𝑺𝒂𝒗𝒊𝒐𝒖𝒓 𝑶𝒇 𝑲𝒂𝒔𝒉𝒎𝒊𝒓 ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जी का जन्म 14 जून 1899 को कश्मीर के सांबा जिले के गांव बगूना ( अब राजेन्द्रपुरा ) में हुआ था । चूंकि डोगरा राजपूत परिवार में जन्म लिया था, दादा जनरल बाज सिंह भी महाराजा गुलाब सिंह की सेना में थे , और पिता सूबेदार लाखा सिंह भी रणभूमि में शहीद हुए थे , तो सेना की तरफ झुकाव होना लाजमी था । पिता के असामयिक निधन के कारण 6 माह के राजेन्द्र सिंह का पालन पोषण चाचा लेफ्टिनेंट कर्नल गोविंद सिंह जी की देख रख में हुआ ।

1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के पश्चात सेना में जाने का निर्णय लिया और 1921 में ही इन्होंने जम्मू एंड कश्मीर स्टेट फोर्स को ज्वाइन कर लिया ।

अच्छे रिकॉर्ड को देखते हुए 1942 में इन्हें बिर्गेडियर के तौर पर प्रोमोशन मिला, 1947 में इनके अदम्य साहस और रणनीतिक कौशल को देखते हुए इन्हें जम्मू कश्मीर स्टेट फोर्स का चीफ ऑफ स्टाफ नियुक्त किया गया । इनके जम्मू & कश्मीर फोर्स चीफ बनने के तुरंत बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी।

21 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी कबीलाई फौजों ने कश्मीर को घेर कर, 6000 कबीलाईयों की इस फौज ने कश्मीर को अपने कब्जे में लेने की कोशिश शुरू कर दी, साथ ही जिहाद के नाम पर कश्मीर के स्थानीय मुस्लिमों को भी कबालाईयों ने अपने साथ ले लिया उन्नत हथियारों से लैस इस फौज ने कश्मीरी सिख कश्मीरी पंडितों के साथ भीषण बर्बरता करते हुए बारामुला की तरफ से श्री नगर पर कब्जा करने की नियत से श्री नगर की ओर बढ़ना शुरू किया । इस घुसपैठ को रोकने के लिए 22 अक्टूबर 1946 को जम्मू कश्मीर स्टेट फोर्स को पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेडने का ऑर्डर मिला ।

महाराजा हरि सिंह जी का आदेश था जल्द से जल्द जवानों को इक्कठा कर उरी के लिए प्रस्थान करें और आखिरी गोली आखिरी सांस तक देश की रक्षा करनी है, ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जी ने भी महाराजा हरि सिंह को आश्वाशन दिया कि घुसपैठिए को कश्मीर पर कब्जा करने के लिए उनके शव के ऊपर से जाना होगा ।

ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जी को मात्र 120 जवान मिले, वाहनों की कमी थी तो पूरी टुकड़ी निजी वाहनों से ही उरी के लिए रवाना हो गई, 23 अक्टूबर 1947 को उरी पहुंचते ही टुकड़ी को दो हिस्सों में बांट दिया गया एक टुकड़ी ने उरी नाला पर मोर्चा संभाला दूसरी गढ़ी पोस्ट पर शत्रु को खदेड़ने के लिए चल दी। शत्रु दल के पास उन्नत हथियार थे और संख्या बल में भारतीय जवानों से कई गुना ज्यादा थे शत्रु दल ऊंचाई पर घात लगाए बैठा था इसलिए पहले हमले में भारतीय टुकड़ी को काफी नुकसान झेलना पड़ा, बिर्गेडियर राजेन्द्र सिंह जी ने हेड क्वार्टर संपर्क किया और अतिरिक्त सैन्य बल की मांग की , अगले दिन कैप्टन ज्वाला सिंह अपने 80 जवानों के साथ उरी पहुंचे ।

संख्या बल और गोला बारूद की कमी होने के बावजूद भी ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जामवाल के नेतृत्व में टुकड़ी ने कबीलाई घुसपैठियों को मुंहतोड़ जबाव देते हुए दो दिन तक पोस्ट को डिफेंड किया ।

ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने एक अन्य टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए ऐसे साहस का परिचय दिया कि उरी रामपुर सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा कहा जाता है कि इस पूरे हमले में बिर्गेडियर राजेन्द्र सिंह जी की सूझ बूझ और पुल को उड़ाने की उनकी रणनीति मील का पत्थर साबित हुई , जिसके कारण पाकिस्तान को भयंकर नुकसान तो हुआ ही था साथ ही साथ भारतीय दल को तैयारी करने के लिए और समय मिला ।

26 अक्टूबर को कबीलाईयों ने पुनः अपनी पूरी शक्ति के साथ एक और हमला किया , भारतीय टुकड़ी ने रोड ब्लॉक कर रखा था शत्रु की तरफ से भारी गोलीबारी हो रही थी इसी बीच बिर्गेडियर राजेन्द्र सिंह जी के ड्राइवर को गोली लगी और वह मौके पर ही वीरगति को प्राप्त हो गया और ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जी को पैर में गोली लगी , अब गाड़ी की स्टीयरिंग की ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जी के हाथ में थी, भरी एमएमजी फायरिंग के बीच ब्रिगेडियर अपनी रिवॉल्वर से ही कई दुश्मनों को मार गिराया , ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जी ने अकेले ही इस पोजिशन पर रुकने का फैसला करते हुए , अपनी टुकड़ी को डिफेंडिंग पोजिशन पर जाने का ऑर्डर दिया ताकि घुसपैठिए श्री नगर तक ना पहुंचने पाएं , काफी देर तक चली गोलीबारी में ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह वीरगति को प्राप्त हुए और कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे में होने से बचा गए और 27 अक्टूबर 1947 को कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग बना और इसी प्रकार ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने अपने क्षत्रिय धर्म विजय या वीरगति को चरितार्थ किया और मातृभूमि के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर किया ।

ये ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जी की अदम्य वीरता का ही परिणाम है कि जम्मू कश्मीर आज भारत का अभिन्न अंग है ।

इस अदम्य वीरता के लिए इन्हें 26 जनवरी 1950 को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया ।

शत शत नमन

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