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बिहार दिवस और छत्तीसगढ़ की संस्कृति: अमित बघेल का कड़ा विरोध


बिहार दिवस और छत्तीसगढ़ की संस्कृति: अमित बघेल का कड़ा विरोध


हाल ही में छत्तीसगढ़ में इसे मनाने की खबरें चर्चा में हैं। इसे आधार बनाकर मैं आपको इसके बारे में जानकारी देता हूं।


परिचय

छत्तीसगढ़ में बिहार दिवस (22 मार्च) को मनाने की घोषणा और बिहारी त्योहारों जैसे छठ पूजा की बढ़ती लोकप्रियता ने एक सवाल खड़ा कर दिया है—क्या यह छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति को खत्म कर देगा? छत्तीसगढ़ में नवरात्रि में जाग गीत और सुआ गीत के साथ नृत्य की परंपरा रही है, लेकिन गरबा के आने से यह कमजोर पड़ रही है। इसी तरह, पुत्र की खुशी के लिए की जाने वाली कमरछठ पूजा अब छठ पूजा की चमक के आगे पीछे छूट रही है। अगर बिहार के त्योहारों को मान्यता मिलती है, तो क्या अन्य राज्यों के लोग भी अपने त्योहारों की मांग करेंगे, और इसका छत्तीसगढ़िया संस्कृति पर क्या असर पड़ेगा?  इस बीच, छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के अध्यक्ष अमित बघेल ने X पर बिहार दिवस के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। आइए गहराई से समझते हैं।


बिहार दिवस क्या है?

बिहार दिवस हर साल 22 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन 1912 में बिहार के बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग होकर एक स्वतंत्र प्रांत बनने की याद में मनाया जाता है। 


छत्तीसगढ़ में बिहार दिवस मनाने की बात

हाल ही में छत्तीसगढ़ में बिहार दिवस मनाने की घोषणा से एक बहस छिड़ गई है। छत्तीसगढ़ सरकार, जो वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व में है, ने इस आयोजन को बढ़ावा देने का फैसला किया है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में बिहारी मूल के लोग रहते हैं, जो यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में काम करते हैं—जैसे मजदूरी, व्यापार, और उद्योग। सरकार का कहना है कि यह आयोजन इन लोगों की पहचान और योगदान को सम्मान देने का तरीका है।


छत्तीसगढ़ में प्रवासी समुदाय और त्योहार

छत्तीसगढ़ में बिहारी, गुजराती, बंगाली, राजस्थानी, हरियाणवी, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, और महाराष्ट्रीयन समुदाय बड़ी संख्या में रहते हैं। अनुमान के मुताबिक, राज्य की आबादी का 10-15% प्रवासी हो सकता है। ये समुदाय अपने त्योहार निजी स्तर पर मनाते हैं, लेकिन बिहार दिवस और छठ पूजा जैसे आयोजनों को सरकारी समर्थन मिलने से यह बहस शुरू हुई है कि क्या यह छत्तीसगढ़ की संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहा है। पहले से ही छत्तीसगढ़िया लोग अपनी संस्कृति को छोड़कर बाहरी त्योहारों को अपना रहे हैं।


अमित बघेल का X पोस्ट

20 मार्च 2025 को अमित बघेल ने X पर पोस्ट किया:  

*"वाह!!! मुख्यमंत्री जी......  

न त मुझ्या भक्ति करस न मझा भक्ति अऊ न ही नबालिक नोनी मन ल बिहार लेज के वेश्यावृत्ति म धकेल के बात होवय छाय ओकर परिवार संग होय  

धोखाधड़ी बर छालो कुबड़ नर करेस  

शराब के 67 अऊ नवा दुकान खोले के बात  

उमर ले बिहार तिहार  

ते काकर बर मुख्यमंत्री बने हव  

छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अऊ छत्तीसगढ़िया मन ल बाबड़ करे के किरिया खाय हस का???  

ए सब छत्तीसगढ़ म नहि होवन दन  

एकर पूरा हिसाब लोकतांत्रिक ढंग से छत्तीसगढ़िया मन ठीक से करबो  

छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना


इस पोस्ट में अमित बघेल ने मुख्यमंत्री पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं:

- बिहार में नाबालिक लड़कियों को वेश्यावृत्ति में धकेलने की बात को नजरअंदाज करना।

- धोखाधड़ी और शराब की 67 नई दुकानें खोलने का मुद्दा।

- बिहार दिवस ("बिहार तिहार") को छत्तीसगढ़ में मनाने को छत्तीसगढ़िया अस्मिता पर हमला बताया।  

उन्होंने इसे "छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी, और छत्तीसगढ़िया" का अपमान करार दिया और लोकतांत्रिक तरीके से इसका हिसाब करने की चेतावनी दी।


छत्तीसगढ़ की संस्कृति पर बाहरी प्रभाव

कमरछठ बनाम छठ पूजा:

छत्तीसगढ़ में कमरछठ पूजा पुत्र की खुशी और समृद्धि के लिए की जाती है। यह स्थानीय परंपरा का हिस्सा है, जिसमें सूर्य को अर्घ्य देने की रीत अलग होती है। लेकिन बिहारी समुदाय की छठ पूजा, जो चार दिनों तक बड़े पैमाने पर मनाई जाती है, अब छत्तीसगढ़ में जोर-शोर से होने लगी है। छत्तीसगढ़िया लोग अपनी कमरछठ को कम महत्व देने लगे हैं और छठ पूजा को प्राथमिकता दे रहे हैं। Dainik Bhaskar (नवंबर 2024) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रायपुर और भिलाई में छठ पूजा के लिए घाट बनाए गए, जिसमें स्थानीय लोग भी शामिल हुए। यह एक सांस्कृतिक विस्थापन का उदाहरण है।

 

बिहार दिवस और अन्य मांगें:

अगर बिहार दिवस को सरकारी मान्यता मिलती है, तो गुजराती (नववर्ष), बंगाली (दुर्गा पूजा), राजस्थानी (गणगौर), और अन्य समुदाय भी अपने त्योहारों की मांग कर सकते हैं। यह छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति—बस्तर दशहरा, पोलो, तीजा, और मड़ई—को और कमजोर कर सकता है। X पर एक पोस्ट में लिखा था, "बिहार दिवस से शुरूआत होगी, फिर हमारी संस्कृति कहाँ बचेगी?"

जस गीत और सुआ नृत्य का ह्रास:  

छत्तीसगढ़ में नवरात्रि का उत्सव अनोखा है। यहाँ जस गीत और सुआ गीत के साथ सुआ नृत्य की परंपरा रही है। ये गीत और नृत्य छत्तीसगढ़िया ग्रामीण जीवन और लोक संस्कृति का प्रतीक हैं। लेकिन जब से गुजरात का गरबा छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय हुआ, खासकर शहरी क्षेत्रों में, लोग अपनी परंपरा छोड़कर गरबा में शामिल होने लगे। X पर एक यूज़र (@ChhattisgarhiyaSoul) ने लिखा, "हमारे जस गीत अब सुनाई नहीं देते, हर तरफ गरबा की धूम है।" यह सांस्कृतिक बदलाव चिंताजनक है।


छत्तीसगढ़ियों का अन्य राज्यों में शोषण

जब छत्तीसगढ़िया लोग नौकरी के लिए अन्य राज्यों में जाते हैं, तो उन्हें बंधक मजदूरी का शिकार बनाया जाता है। India TV (मार्च 2025) की रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ की 42 लड़कियाँ बिहार के वेश्यालयों में पाई गईं, जो नौकरी के बहाने तस्करी का शिकार हुईं। अमित बघेल ने अपने पोस्ट में इस मुद्दे को भी उठाया।


ओडिशा के लोगों द्वारा अपमान

रायपुर में रहने वाले ओडिशा के कुछ लोग फेसबुक पर छत्तीसगढ़ को गाली दे रहे हैं, जैसे "रायपुर गंदा शहर है" या "यहाँ की संस्कृति पिछड़ी है।" यह व्यवहार छत्तीसगढ़िया लोगों के लिए अपमानजनक है, खासकर जब छत्तीसगढ़ में प्रवासियों का स्वागत होता है।


सामाजिक तनाव:

फेसबुक पर ऐसी टिप्पणियाँ स्थानीय और प्रवासी समुदायों के बीच तनाव बढ़ा सकती हैं। X पर एक यूज़र (@CGPride) ने लिखा, "हम यहाँ सबको जगह देते हैं, फिर हमें गाली क्यों?" यह भावना छत्तीसगढ़िया अस्मिता को और मजबूत कर सकती है।


पहचान का संकट
अगर बाहरी लोग यहाँ रहकर छत्तीसगढ़ को अपमानित करते हैं, तो स्थानीय लोग अपनी संस्कृति को और सख्ती से बचाने की कोशिश करेंगे। यह सांस्कृतिक अलगाव को जन्म दे सकता है।

 

सामुदायिक एकता में कमी
प्रवासियों और स्थानीय लोगों के बीच विश्वास कम हो सकता है, जो सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुँचाएगा।

 

आत्मसम्मान पर चोट
छत्तीसगढ़िया लोग पहले से ही अपनी संस्कृति के कमजोर पड़ने से परेशान हैं। यह अपमान उनकी भावनाओं को और ठेस पहुँचा सकता है।


अमित बघेल का रुख और इसका महत्व

अमित बघेल का X पोस्ट छत्तीसगढ़िया अस्मिता की रक्षा के लिए एक मजबूत आवाज है। वे बिहार दिवस को छत्तीसगढ़ में मनाने को स्थानीय संस्कृति और सम्मान पर हमला मानते हैं। उनके पोस्ट से साफ है कि:

- वे छत्तीसगढ़िया पहचान को प्राथमिकता देना चाहते हैं।  

- बाहरी प्रभावों को लेकर गहरी चिंता है, खासकर जब छत्तीसगढ़िया लोग बाहर शोषण झेल रहे हैं।  

- वे इसे लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने की बात कह रहे हैं, जो एक बड़े आंदोलन की ओर इशारा करता है।  


मेरा विश्लेषण

अमित बघेल का पोस्ट छत्तीसगढ़िया लोगों की भावनाओं को प्रतिबिंबित करता है। बिहार दिवस और छठ पूजा जैसे बाहरी त्योहार छत्तीसगढ़ की संस्कृति को कमजोर कर रहे हैं। जस गीत, कमरछठ, और स्थानीय परंपराएँ पहले से ही खतरे में हैं। इसके साथ ही, छत्तीसगढ़िया लोग बाहर शोषण झेल रहे हैं, और यहाँ रहने वाले कुछ ओडिशा के लोग अपमान कर रहे हैं। यह एक दोहरा अन्याय है।  

समाधान

सरकार को छत्तीसगढ़िया त्योहारों को बढ़ावा देना चाहिए। बाहरी त्योहारों के लिए एक सामूहिक "प्रवासी उत्सव" बनाया जा सकता है। साथ ही, प्रवासियों को सम्मान की शिक्षा और छत्तीसगढ़ियों को बाहर शोषण से बचाने के लिए कदम उठाने होंगे।  


निष्कर्ष

अमित बघेल का X पोस्ट छत्तीसगढ़िया अस्मिता की लड़ाई का प्रतीक है। बिहार दिवस को मान्यता देना और बाहरी प्रभावों का बढ़ना छत्तीसगढ़ की संस्कृति को खत्म कर सकता है। हमें अपनी जड़ें—जस गीत, कमरछठ, और आतिथ्य—बचानी होंगी। क्या आप अमित बघेल के रुख से सहमत हैं? अपनी राय साझा करें।


लेखक - हिमालय बंजारे


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