जस्टिस यशवंत वर्मा का तबादला और कैश कांड: अनसुलझे सवाल
21 मार्च 2025 की तारीख। दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से "भारी मात्रा में कैश" बरामद होने की खबर ने देश को चौंका दिया है। यह खबर उस समय और रहस्यमयी हो गई जब इसके साथ ही उनके तबादले की बातें सामने आईं। पहले खबर थी कि उनका तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट के लिए तय हो गया है, लेकिन बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, 21 मार्च की दोपहर तक तबादले का कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं हुआ। यह पूरा मामला संदेह से भरा हुआ है और जनता के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। आइए, इस मामले को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं।
क्या हुआ था 14 मार्च को?
खबरों के मुताबिक, 14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले में आग लगी। उस समय जज घर पर मौजूद नहीं थे। दमकल कर्मियों ने आग बुझाने के दौरान एक कमरे से "भारी मात्रा में कैश" बरामद किया। इस घटना की आधिकारिक एंट्री स्थानीय पुलिस ने की, जिसके बाद यह जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों और फिर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तक पहुंचाई गई। लेकिन सवाल यह है कि जब मामला इतना गंभीर है और आधिकारिक तौर पर दर्ज हो चुका है, तो देश को यह क्यों नहीं बताया जा रहा कि आखिर यह "भारी मात्रा" कितनी थी? 10 लाख, 10 करोड़, 50 करोड़, या उससे भी ज्यादा?
"भारी मात्रा" का मतलब क्या?
"भारी मात्रा में कैश" - यह वाक्यांश अब खबरों में बार-बार इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन इसका कोई ठोस जवाब नहीं मिल रहा। क्या यह कैश इतना था कि पूरा कमरा भरा हुआ था? क्या यह किसी अलमारी में ठूंसा गया था? या कई अलमारियों में रखा गया था? कैश को "भारी मात्रा" कहकर नोटों की गिनती को एक रहस्य बना दिया गया है। क्या इसे किलोग्राम में तौला गया या करोड़ों-अरबों में गिना गया? यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि अगर पुलिस और कोर्ट ने साफ-साफ बता दिया होता कि कितना कैश था, तो शायद यह मामला इतना संदिग्ध न लगता।
तबादले की खबर और उसका बदलना
जस्टिस वर्मा का तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट के लिए तय होने की बात सामने आई, लेकिन बाद में यह खबर भी बदल गई। क्या यह तबादला कैश बरामदगी से जुड़ा था? सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम, जो जजों की नियुक्ति और तबादले का काम देखता है, इसमें सर्वसम्मति से फैसला लिया गया था। लेकिन अगर यह तबादला भ्रष्टाचार के संदेह पर आधारित था, तो जांच के आदेश क्यों नहीं दिए गए? और अगर कॉलेजियम जस्टिस वर्मा के जवाब से संतुष्ट नहीं था, तो फिर इसकी सार्वजनिक जानकारी क्यों नहीं दी गई?
पारदर्शिता कहां है?
जस्टिस वर्मा 21 मार्च को कोर्ट में नहीं आए। न ही उन्होंने कैश से जुड़े सवालों का जवाब दिया। खबरें सूत्रों के हवाले से तैर रही हैं कि जांच शुरू हो गई है, लेकिन कॉलेजियम या जस्टिस वर्मा की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया। अगर एक जज के घर से इतनी बड़ी मात्रा में कैश मिलता है, तो क्या यह जनता का हक नहीं कि उसे सच पता चले? न्यायपालिका में भरोसा बनाए रखने के लिए पारदर्शिता जरूरी है। अगर जस्टिस वर्मा अपना पक्ष सामने रखें, तो उनका हित भी इसी में है। लेकिन कानून की कौन सी किताब कहती है कि ऐसी स्थिति में चुप्पी साधी जाए?
तुलना के उदाहरण
हाल ही में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के घर ईडी का छापा पड़ा। नोट गिनने की मशीनें ले जाई गईं और बाद में बघेल ने बताया कि 33 लाख कैश मिला, जिसका हिसाब दिया जा सकता है। एक नेता को सार्वजनिक रूप से जवाब देना पड़ता है, तो क्या एक जज को नहीं देना चाहिए? अगर सरकार और संसद की स्क्रूटनी हो सकती है, तो न्यायपालिका की क्यों नहीं?
कानूनी प्रावधान क्या कहते हैं?
आयकर अधिनियम 1961: 2 लाख से अधिक नकद बिना वैध स्रोत के अवैध माना जा सकता है।
बेनामी लेनदेन अधिनियम 1988: आय से अधिक संपत्ति पकड़ी जाए तो कार्रवाई हो सकती है।
प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988: सरकारी अधिकारियों (जजों सहित) की असामान्य संपत्ति जांच का विषय है।
अगर कैश की मात्रा 10 लाख से अधिक है और स्रोत अस्पष्ट है, तो ईडी या आयकर विभाग को जांच करनी चाहिए। लेकिन इस मामले में अभी तक ऐसी कोई कार्रवाई क्यों नहीं दिख रही?
जनता का भरोसा दांव पर
जस्टिस वर्मा के घर से कैश मिलने की खबर ने न्यायपालिका में जनता के भरोसे पर सवाल उठा दिए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के धनंजय महापात्रा की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ जज कॉलेजियम के फैसले से खुश नहीं हैं, क्योंकि न तो जांच शुरू की गई और न ही इस्तीफा मांगा गया। दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र उपाध्याय की कोर्ट में वरिष्ठ वकील अरुण भारद्वाज ने भी इस घटना पर चिंता जताई और प्रशासनिक कदम उठाने की मांग की।
आगे क्या होना चाहिए?
- जस्टिस वर्मा को सामने आकर बताना चाहिए कि कैश कितना था, कहां से आया, और किसका था।
- सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को पारदर्शी तरीके से अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
- अगर संदेह गहरा है, तो तत्काल जांच के आदेश और एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।
- ईडी या आयकर विभाग को इस मामले में सक्रिय होना चाहिए, जैसा कि अन्य मामलों में होता है।
निष्कर्ष
यह मामला सिर्फ जस्टिस यशवंत वर्मा का नहीं, बल्कि पूरी न्यायपालिका की साख का है। जब तक "भारी मात्रा में कैश" की सच्चाई सामने नहीं आती, तब तक संदेह बढ़ता रहेगा। जनता यह जानना चाहती है कि आखिर कितना कैश था, किसका था, और कहां से आया? अगर न्यायपालिका खुद पारदर्शिता नहीं दिखाएगी, तो जनता किससे न्याय की उम्मीद करेगी? समय आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम इस मामले में सख्त और स्पष्ट कदम उठाएं, ताकि लोगों का भरोसा बना रहे।

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