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ब्राह्मणवाद, गुलामी और क्रांति: एक गहरा चिंतन



ब्राह्मणवाद, गुलामी और क्रांति: एक गहरा चिंतन


परिचय

भारतीय समाज में ब्राह्मणवाद और जाति व्यवस्था ने सदियों से 90% लोगों को गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। पुराणों में ब्राह्मणों के "मुंह से पैदा होने" का मिथक हो या मनुस्मृति का शूद्रों को नीचा दिखाने वाला विधान, इन सबका मकसद एक वर्ग को ऊंचा और बाकियों को दबाकर रखना था। ज्योतिबा फुले, डॉ. अंबेडकर, रामस्वरूप वर्मा और पेरियार जैसे विचारकों ने इन मिथकों को तोड़ा और समाज को वैज्ञानिक सोच की राह दिखाई। इस ब्लॉग में हम इनके साहित्य के आधार पर यह समझेंगे कि कैसे ब्राह्मणवाद ने गुलामी को जन्म दिया और क्रांति ही इसका जवाब है।


ब्राह्मण मुंह से पैदा हुए: मिथक का पर्दाफाश

पुराण कहते हैं कि ब्राह्मण ब्रह्मा के मुंह से पैदा हुए। सवाल उठता है—अगर यह सच है, तो आज ब्राह्मण क्यों कहते हैं कि वे पेट से पैदा हुए? ऑपरेशन से बच्चा निकालना पड़ता है, तो क्या मुंह का ऑपरेशन होना चाहिए? विज्ञान इस मिथक को सिरे से खारिज करता है। ज्योतिबा फुले ने गुलामगिरी में लिखा कि यह विचार शूद्रों को नीचा दिखाने और ब्राह्मणों की महिमा स्थापित करने का हथकंडा है। हर इंसान मां के गर्भ से पैदा होता है—यह जैविक सत्य है। फिर यह दावा क्यों? फुले कहते हैं कि यह सोच समाज को बांटने और 90% लोगों को नीच मानने के लिए गढ़ी गई। विज्ञान के तर्क पर यह पूरी तरह बेबुनियाद है।


मनुस्मृति: राष्ट्र का कलंक

रामस्वरूप वर्मा ने मनुस्मृति: राष्ट्र का कलंक में इस ग्रंथ को भारत के लिए अभिशाप बताया। मनुस्मृति में शूद्रों को शिक्षा से वंचित करने, उन्हें दास बनाए रखने और महिलाओं को अधिकारहीन करने के नियम हैं। वर्मा लिखते हैं कि यह एक ऐसी व्यवस्था थी जिसने 90% बैकवर्ड्स को पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाम बनाया। उनका कहना है कि मनु का यह जुर्म था कि उसने जाति व्यवस्था को कानूनी जामा पहनाया। आज जब संविधान हमारा मार्गदर्शक है, तब भी कुछ ताकतें मनुस्मृति को जीवित करना चाहती हैं। यह सवाल उठता है—क्या हम फिर से उस तांडव की ओर बढ़ रहे हैं?


गुलामी की जड़: सोच का हरण

ज्योतिबा फुले ने गुलामगिरी में बताया कि गुलाम बनाने का पहला कदम है सोच को विकृत करना। जब उन्हें एक ब्राह्मण मित्र की बारात से निकाला गया, तो पूछा गया, "तुम नीच कैसे हो?" जवाब था, "जन्म से।" फुले ने तर्क दिया कि कर्म से वे नीच नहीं, तो जन्म से कैसे? उनका कहना था कि यह विचार समाज को नीच और ऊंच में बांटने का षड्यंत्र है। जब तक लोग यह नहीं समझेंगे कि गुलामी जन्मजात नहीं, बल्कि थोपी गई है, तब तक वे आजाद नहीं होंगे। अरुण कुमार गुप्ता जी का कहना है कि मार्क्सवाद और भारत की परिस्थितियों को समझने पर यह साफ होता है कि यहां वर्ग नहीं, वर्ण और जाति का तांडव है।


अछूतों का दर्द और अंबेडकर का संघर्ष

डॉ. अंबेडकर ने अछूत समस्या और समाधान में अपनी और अपने समुदाय की पीड़ा को बयां किया। उन्हें उस धरती पर रहने लायक नहीं समझा गया जहां वे पैदा हुए। अछूतों को जंगलों, घाटियों और कंदराओं में जीवन बिताने को मजबूर किया गया। उनके साहित्य में इतनी ताकत थी कि कांग्रेस सरकार ने इसे जब्त कर लिया, क्योंकि यह 90% बैकवर्ड्स की आंखें खोल सकता था। रामस्वरूप वर्मा और ललई सिंह यादव ने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी ताकि यह साहित्य जनता तक पहुंचे। अंबेडकर का मानना था कि क्रांति ही इस दर्द का समाधान है।


आत्मा और स्वर्ग-नरक: वैज्ञानिक चुनौती

ब्राह्मणवाद ने आत्मा, स्वर्ग और नरक की कहानियां गढ़ीं। रामस्वरूप वर्मा ने लिखा कि यह लोगों को भ्रम में रखने और उनकी कमाई लूटने का जरिया है। विज्ञान कहता है कि अंतरिक्ष में कोई स्वर्ग-नरक नहीं है। टेलीस्कोप और उपकरणों से ब्रह्मांड को छान लिया गया, लेकिन आत्मा का कोई सबूत नहीं मिला। हर क्षण लाखों जीव मरते हैं—क्या उनकी आत्माएं कतार में लगती हैं? यह तर्कहीन है। वर्मा कहते हैं कि यह सब ब्राह्मणों का तांडव है जो लोगों को बेवकूफ बनाता है।


क्रांति का अर्थ और जरूरत

क्रांति क्यों और कैसे में रामस्वरूप वर्मा क्रांति को परिवर्तन कहते हैं—सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक क्षेत्रों में बदलाव। रूस और चीन की क्रांतियों से अलग, भारत में वर्ण और जाति के कारण क्रांति की राह अनोखी है। यहां 90% गरीब, दलित और पिछड़ों के कल्याण के लिए क्रांति जरूरी है। अरुण कुमार गुप्ता जी कहते हैं कि मार्क्सवाद ने उन्हें शोषण समझाया, लेकिन भारत में ज्योतिबा फुले, पेरियार, अंबेडकर और जगदेव प्रसाद ने स्थानीय परिस्थितियों को उजागर किया। क्रांति तब होगी जब सोच बदलेगी।


साहित्य: ज्ञान का द्वार

अर्जक संघ और अन्य विचारकों की किताबें इस क्रांति का आधार हैं। कुछ प्रमुख किताबें:

1. गुलामगिरी (ज्योतिबा फुले): गुलामी की जड़ें और ब्राह्मणवाद का पर्दाफाश।

2. मनुस्मृति: राष्ट्र का कलंक (रामस्वरूप वर्मा): मनु के जुर्म का विश्लेषण।

3. अछूत समस्या और समाधान (अंबेडकर): अछूतों की पीड़ा और समाधान।

4. सच्ची रामायण (पेरियार): रामायण के झूठ और मिलावट को उजागर करती कृति।

5. क्रांति क्यों और कैसे (रामस्वरूप वर्मा): परिवर्तन का दर्शन।

6. ब्राह्मणवाद बनाम मानववाद (रामस्वरूप वर्मा): दो विचारधाराओं का टकराव।

7. सृष्टि और प्रलय (महाराज सिंह भारती): विज्ञान आधारित चिंतन।


ये किताबें मिथकों को तोड़ती हैं और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देती हैं। इन्हें पढ़ने से ज्ञान का दरवाजा खुलता है।


निष्कर्ष

ब्राह्मणवाद ने समाज को गुलाम बनाया, लेकिन ज्योतिबा फुले, अंबेडकर, रामस्वरूप वर्मा और पेरियार ने हमें आजादी का रास्ता दिखाया। उनकी किताबें पढ़ें, सोचें और क्रांति का हिस्सा बनें। विज्ञान और तर्क ही हमें मिथकों से मुक्त करेगा। 90% बैकवर्ड्स की आंखें खुलेंगी, तो क्रांति अपने आप होगी। क्या आप तैयार हैं?

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