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निगरानी का नया तूफान: निजता की चिता पर सरकार का खेल?




निगरानी का नया तूफान: निजता की चिता पर सरकार का खेल?


मेरा नाम हिमालय बंजारे है। मैं एक स्वतंत्र विचारक और लेखक हूँ, जो सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर अपनी राय रखता हूँ। मुझे इस देश की जटिलताओं को समझने और उसे आम लोगों तक सरल भाषा में पहुँचाने का शौक है। आज मैं आपके सामने एक ऐसा विषय लेकर आया हूँ, जो हमारी निजता, सरकार की नीतियों और नागरिक अधिकारों के बीच के संतुलन पर सवाल उठाता है। तो चलिए, इस गंभीर मसले पर बात शुरू करते हैं।


निगरानी का नया कानूनी चेहरा  

दोस्तों, नमस्ते! आपने सुना होगा कि एक वक्त था जब इस देश में सरकार खुल्लम-खुल्ला जासूसी करवाती थी। याद है ना, वो सॉफ्टवेयर जिसका नाम था पेगासस? उस दौर में न सिर्फ विपक्ष के नेता, पत्रकार, और सामाजिक कार्यकर्ता, बल्कि सुप्रीम कोर्ट तक उसकी जद में आ गया था। सरकार अपने ही कैबिनेट मंत्रियों की जासूसी कर रही थी। हंगामा मचा, मामला कोर्ट तक गया, लेकिन तब सरकार का तर्क था कि उसे देश के भीतर क्या हो रहा है, यह जानना जरूरी है। उसे डर था कि कहीं उसके खिलाफ कोई साजिश या सोच पनप न रही हो।  


लेकिन आज का सीन कुछ और है। अब सरकार को जासूसी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। क्यों? क्योंकि सरकार ऐसे कानून बना रही है, जिसके तहत आपकी हर बातचीत—चाहे वो WhatsApp पर हो, Instagram पर हो, या कहीं और—वह सब कुछ सरकार की नजर में होगा। आपके ग्रुप चैट्स, आपके मैसेजेस, आपकी निजी जिंदगी का हर कोना—सरकार जब चाहे, उसमें झाँक सकती है। कल तक जासूसी गैरकानूनी थी, लेकिन अब इसे कानून का जामा पहनाया जा रहा है।  


सरकार का तर्क: टैक्स चोरी और ब्लैक मनी

सरकार कह रही है कि यह सब टैक्स चोरी, ब्लैक मनी और क्रिप्टो करेंसी के खेल को रोकने के लिए है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में संसद में बताया कि इंक्रिप्टेड मैसेजेस को डिकोड करने से ₹250 करोड़ की अघोषित संपत्ति पकड़ी गई। WhatsApp ग्रुप्स की जाँच से ₹90 करोड़ और बोगस बिल्स के जरिए ₹200 करोड़ का पता चला। कुल मिलाकर ₹500 करोड़ से थोड़ा ज्यादा। सरकार का कहना है कि यह रकम बड़ी है, और इसे पकड़ने के लिए हर नागरिक की डिजिटल जिंदगी में घुसना जरूरी है।  


लेकिन रुकिए, जरा सोचिए। क्या यह वाकई सिर्फ टैक्स चोरी रोकने की बात है? पिछले 10 साल में सरकार ने बैंकों के ₹16 लाख 35 हजार करोड़ के कर्ज माफ किए। ये वो कर्ज थे, जो बड़े-बड़े कॉरपोरेट्स ने लिए और फिर देश छोड़कर भाग गए। 2014-15 में ₹58,786 करोड़ माफ हुए, और रिकवरी हुई बस ₹5,461 करोड़। 2018-19 में ₹1 लाख करोड़ से ज्यादा माफ हुए। कुल मिलाकर, रिकवरी का परसेंटेज इतना कम है कि सवाल उठता है—सरकार का ध्यान कहाँ है? लाखों करोड़ की माफी पर चुप्पी, और ₹500 करोड़ के लिए आपकी-हमारी निजता पर हमला?


ईडी का खेल और नया इनकम टैक्स बिल

फाइनेंस मिनिस्टर कहती हैं कि ईडी ने शानदार काम किया। ₹22,280 करोड़ की संपत्ति पीड़ितों को लौटाई गई। लेकिन वो ये नहीं बतातीं कि ईडी जिस ₹5 लाख करोड़ से ज्यादा की रकम पर काम कर रही थी, उसका सिर्फ 0.5% ही रिकवर हुआ। बाकी पैसा कहाँ गया? जो लोग देश छोड़कर भाग गए, उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं? 29 कंपनियाँ, जिन्होंने ₹61,127 करोड़ का लोन लिया और फरार हो गईं, उनके नाम सरकार के पास हैं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं।  


अब अगस्त 2025 में नया इनकम टैक्स बिल आने वाला है। इसके तहत सरकार को हर नागरिक के डिजिटल खातों में झाँकने का अधिकार मिलेगा। कोई ऑथराइज्ड अफसर आपके WhatsApp ग्रुप में घुस सकता है, आपके मैसेजेस देख सकता है। सरकार कहती है कि अगर कोई सहयोग नहीं करता, तो भी वो आपके डेटा तक पहुँच सकती है। लेकिन सवाल ये है—जब RTI जैसे कानून को कमजोर कर दिया गया, जब पीएम केयर्स और पीएमओ से सवालों के जवाब नहीं मिलते, तो क्या ये पारदर्शिता है या नागरिकों पर नकेल कसने की तैयारी?


राजनीतिक डर और निजता का अंत

विपक्ष का कहना है कि ये सब राजनीतिक हथियार है। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का बैंक अकाउंट सीज कर दिया गया था। उसे अपने कार्यकर्ताओं को सैलरी तक नहीं दे पाने की नौबत आ गई थी। अगर एक राष्ट्रीय पार्टी के साथ ऐसा हो सकता है, तो आम नागरिक की क्या बिसात? सरकार कहती है कि जनता उसे हर चुनाव में चुनती है, तो उसकी मंशा पर सवाल क्यों? लेकिन जब विपक्ष को बोलने न दिया जाए, जब संसद में हंगामा दबा दिया जाए, तो क्या ये लोकतंत्र है?


क्या करें हम?

दोस्तों, ये वक्त सोचने का है। एक तरफ टैक्स चोरी और ब्लैक मनी रोकना जरूरी है, लेकिन क्या इसके लिए हमारी निजता की कुर्बानी जायज है? जब सरकार लाखों करोड़ माफ कर सकती है, तो ₹500 करोड़ के लिए हमारी जिंदगी में घुसने की क्या जरूरत? क्या ये वाकई पारदर्शिता है, या फिर "बिग ब्रदर" की नई शुरुआत? आप क्या सोचते हैं? अपनी राय जरूर बताइए।  


अंत में:  

इस देश का हर पैसा हमारे खून-पसीने से जुड़ा है। इसे बचाना चाहिए। लेकिन क्या ये रास्ता सही है? बहुत-बहुत शुक्रिया कि आपने ये ब्लॉग पढ़ा। अपने विचार जरूर साझा करें। नमस्ते!  

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