गाज़ियाबाद में होली पर दंगा भड़काने की कोशिश किसने की?
राजेश जोशी की कविता की एक पंक्ति है—
“अंधेरे में सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि वह किताबों को पढ़ना लगभग नामुमकिन कर देता था।”
वहीं भोपाल के मशहूर शायर फजल ताबिश ने लिखा—
“रेशा-रेशा उधेड़ कर देखो, रोशनी कहां से काली है।”
इन पंक्तियों के बीच एक गहरी सच्चाई छिपी है—अंधेरा और नफरत हमें सच देखने से रोकते हैं। और जब सच सामने आता है, तो वह हैरान कर देने वाला होता है। आज की यह कहानी उसी सच को उजागर करती है, जो कभी भीष्म साहनी के उपन्यास *तमस* में दंगों की पृष्ठभूमि बनकर सामने आई थी, तो कभी 2025 के भारत में गाजियाबाद की गौशाला में मांस की साजिश बनकर।
तमस: एक दंगे की शुरुआत
साल 1973 में भीष्म साहनी ने तमस लिखा। इस उपन्यास की शुरुआत एक ऐसी घटना से होती है, जो आज भी हमें सोचने पर मजबूर कर देती है। एक मुसलमान आदमी मुराद अली ने नत्थू चमार से एक सूअर मरवाया और उसे मस्जिद की सीढ़ियों पर फिंकवा दिया। इस छोटी सी साजिश ने पांच दिनों तक दंगे भड़काए, गांव जले, लोग मारे गए, और लाखों का नुकसान हुआ। अंत में पता चला कि यह दंगा स्वाभाविक नहीं था—इसे करवाया गया था। सांप्रदायिकता की आग कितने लोगों को अपनी चपेट में लेती है, यह तमस की वह कड़वी सच्चाई थी, जो आज भी हमारे सामने अलग-अलग रूपों में आती है।
गाजियाबाद 2025: गौशाला में मांस की साजिश
अब बात करते हैं 2025 के भारत की। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में, सिहानी गेट क्षेत्र के लोहिया नगर में, होली से ठीक पहले एक साजिश रची गई। खबर आई कि शिवचंडी गौशाला में मांस के टुकड़े फैलाए गए। गौ रक्षक दल के संरक्षक पवन तोमर ने 12 मार्च को पुलिस को सूचना दी कि गौशाला में प्रतिबंधित पशु वध हुआ है। हंगामा होने की पूरी तैयारी थी—हिंदू संगठन, बजरंग दल, गाय, मांस और दंगे का कॉकटेल तैयार था। लेकिन पुलिस ने जांच की, और सच सामने आया। यह कोई धार्मिक उन्माद नहीं था, बल्कि गौशाला हड़पने की एक सुनियोजित साजिश थी।
पुलिस ने दो लोगों—योगेश चौधरी और शिवम—को गिरफ्तार किया। डीसीपी सिटी राजेश कुमार ने बताया कि यह सारा खेल दो गौशालाओं के बीच की दुश्मनी का नतीजा था। एक गौशाला चलाने वाले नंद किशोर शर्मा ने अपने जीजा अरुण शर्मा की गौशाला पर कब्जा करने के लिए यह षड्यंत्र रचा। उसने अपनी बेटी छाया शर्मा और कुछ साथियों के साथ मिलकर बाजार से भैंस का मांस खरीदा, उसे गौशाला में फैलाया, ताकि दंगा हो, एफआईआर दर्ज हो, और अरुण जेल जाए। फिर वह गौशाला पर कब्जा कर लेता। लेकिन पुलिस की सजगता ने इस साजिश को नाकाम कर दिया।
हैदराबाद का वाकया: बिल्ली और मांस का टुकड़ा
अब जरा एक महीने पीछे चलते हैं। दक्षिण भारत के हैदराबाद में भी ऐसा ही कुछ हुआ। एक मंदिर के परिसर में मांस का टुकड़ा मिला। वीडियो वायरल हुआ, हंगामा मचा। विवादित नेता टी. राजा सिंह, जो हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं और मुसलमानों के खिलाफ खुलेआम जहर उगलते हैं, ने इसे “डेलिबरेट एक्ट ऑफ प्रोवोकेशन” करार दिया। लेकिन *इंडियन एक्सप्रेस* की रिपोर्ट ने सच उजागर किया। 17 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में साफ हुआ कि 11-12 फरवरी 2025 के बीच मंदिर में कोई इंसान गया ही नहीं। पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि एक बिल्ली मांस का टुकड़ा कहीं से लाकर मंदिर में छोड़ गई थी। हंगामा बेकार का था।
दंगे की आग: नफरत से ज्यादा निजी स्वार्थ
गाजियाबाद और हैदराबाद की ये घटनाएं बताती हैं कि दंगे हमेशा धार्मिक नफरत से नहीं भड़कते। कई बार इसके पीछे निजी स्वार्थ, जमीन का झगड़ा, या पुरानी खुन्नस होती है। गाजियाबाद में हिंदुओं ने ही गौशाला में मांस रखवाया, ताकि दंगा हो और उनका काम बन जाए। *तमस* में भी एक सूअर की मौत ने नफरत की आग भड़काई थी। दोनों कहानियों में एक बात कॉमन है—साजिश। और यह साजिश आज सोशल मीडिया और फेक न्यूज के दौर में और आसान हो गई है।
साल 2022 में अयोध्या में भी ऐसा ही हुआ था। कुछ लोगों पर आरोप लगा कि मुस्लिम टोपी पहनकर वे दंगा कराने की साजिश रच रहे थे। जांच में नाम सामने आए—महेश कुमार मिश्रा, प्रत्युष श्रीवास्तव, नितिन कुमार, दीपक कुमार गड, बृजेश पांडे, शत्रुघ्न प्रजापति, विमल पांडे। ये सभी एक ही समुदाय के थे, और उनका मकसद नफरत फैलाना था।
समाज को सजग रहने की जरूरत
नागपुर में अभी हाल ही में प्रोटेस्ट के नाम पर तनाव बढ़ा। एक पक्ष का कहना है कि उनकी पवित्र चीज का अपमान हुआ, तो दूसरा पक्ष 300 साल पुराने बदले की आग में जल रहा है। लेकिन सवाल यह है—क्या हम इतने नासमझ हो गए हैं कि अपने ही लोगों की साजिश में फंस जाएं? पुलिस अगर गाजियाबाद और हैदराबाद में सजग न होती, तो क्या होता? क्या दंगा कराना अब इतना आसान हो गया है कि कोई भी अपनी निजी खुन्नस निकालने के लिए नफरत की आग भड़का दे?
आगे का रास्ता: किताबें पढ़ें, दंगों से बचें
राजेश जोशी का अंधेरा हमें किताबों से दूर करता है, लेकिन फजल ताबिश की रोशनी हमें सच की तलाश करने को कहती है। आज जरूरत है कि हम किताबों के पास जाएं, कलम उठाएं, सोचें, और विचार करें। व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स और फेक न्यूज पर यकीन करने के बजाय सच को परखें। अगर लड़ना है, तो महंगाई से लड़ें, बेरोजगारी से लड़ें, उन सरकारों से सवाल करें जिन्होंने अच्छे दिन का वादा किया था। हिंदू-मुसलमान की आग में जलने से कोई फायदा नहीं।
यह आग अगर आपके घर तक पहुंच गई, तो उसे बुझाने कौन आएगा? इसलिए सजग रहें। दंगों की भीड़ का हिस्सा न बनें। समाज को बचाएं, खुद को बचाएं। क्योंकि सच यही है—जो लोग दंगे कराते हैं, वे उस आग पर अपनी रोटियां सेंकते हैं। अगर हम जाग गए, तो पहले वे दंगे कराने की कोशिश करेंगे। अगर हमने उन्हें रोक लिया, तो आग बुझेगी, और सुकून की दुनिया बनेगी।
अंतिम अपील
यह कहानी आपको सोचने पर मजबूर करे, तो इसे अपने दोस्तों तक पहुंचाएं। ट्विटर, फेसबुक, या जहां भी आप इसे पढ़ रहे हैं, हमें फॉलो करें। सच्चाई को फैलाने में हमारा साथ दें, ताकि हम आपके लिए ऐसी ही जरूरी बातें लाते रहें। क्योंकि जब तक हम सजग नहीं होंगे, यह अंधेरा हमें किताबों से दूर रखेगा—और नफरत की आग हमें जला डालेगी।
0 Comments