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अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति: एक गहन नजर




अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति: एक गहन नजर


अफगानिस्तान, एक ऐसा देश जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, पिछले कुछ दशकों से युद्ध और अस्थिरता का पर्याय भी बन गया है। इस बदलते परिदृश्य में सबसे अधिक प्रभावित समूहों में से एक हैं अफगानिस्तान की महिलाएं। इस ब्लॉग में हम अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति, उनकी चुनौतियों, बदलते हालात और एक वास्तविक उदाहरण के जरिए उनकी पीड़ा पर प्रकाश डालेंगे।


ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति समय के साथ बदलती रही है। 20वीं सदी के मध्य में, खासकर 1960 और 1970 के दशक में, अफगान महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में काफी आजादी मिली थी। उस समय काबुल जैसे शहरों में महिलाएं स्कूल-कॉलेज जाती थीं, नौकरियां करती थीं और आधुनिक कपड़े पहनती थीं। लेकिन 1979 में सोवियत आक्रमण और उसके बाद के गृहयुद्ध ने इस प्रगति को रोक दिया। 1990 के दशक में तालिबान के पहले शासन (1996-2001) के दौरान महिलाओं की स्थिति सबसे खराब हुई। उन्हें घर से बाहर निकलने, पढ़ने या काम करने की इजाजत नहीं थी, और सख्त पर्दा नियम लागू किए गए।


2001 के बाद की प्रगति

2001 में तालिबान शासन के पतन के बाद, अमेरिकी हस्तक्षेप और नई सरकार के गठन के साथ महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण जगी। इस दौरान लाखों लड़कियों ने स्कूल में दाखिला लिया, महिलाओं ने संसद में हिस्सा लिया और कई ने पेशेवर क्षेत्रों में कदम रखा। आंकड़ों के अनुसार, 2010 तक करीब 30 लाख लड़कियां स्कूल जा रही थीं, जो एक बड़ी उपलब्धि थी। महिलाएं डॉक्टर, शिक्षक, पत्रकार और यहाँ तक कि सैनिक के रूप में भी काम करने लगीं। हालांकि, ग्रामीण इलाकों में स्थिति अभी भी चुनौतीपूर्ण बनी रही, जहां रूढ़िवादी परंपराएं और गरीबी ने प्रगति को सीमित किया।


तालिबान का पुनरागमन (2021)

अगस्त 2021 में तालिबान के फिर से सत्ता में आने के बाद अफगान महिलाओं के भविष्य पर एक बार फिर सवाल उठने लगे। तालिबान ने शुरू में दावा किया कि वे महिलाओं को "इस्लामी ढांचे" के तहत अधिकार देंगे, लेकिन हकीकत में कई प्रतिबंध फिर से लागू हो गए। लड़कियों के लिए माध्यमिक स्कूल (6वीं कक्षा से ऊपर) बंद कर दिए गए, और विश्वविद्यालयों में भी उनकी उपस्थिति सीमित कर दी गई। महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से हटाने की कोशिश की गई, जैसे कि सरकारी नौकरियों से निकालना और बिना पुरुष अभिभावक (महरम) के बाहर निकलने पर रोक। बुर्का फिर से अनिवार्य कर दिया गया, और कई जगहों पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा की खबरें भी सामने आईं।


एक वास्तविक उदाहरण: मलालई की कहानी

महिलाओं के साथ हुए अत्याचार को समझने के लिए एक सच्ची घटना पर नजर डालते हैं। मलालई (बदला हुआ नाम), काबुल की एक 25 साल की शिक्षिका थी, जो 2021 से पहले एक स्कूल में लड़कियों को पढ़ाती थी। तालिबान के सत्ता में आने के बाद, उसे नौकरी से निकाल दिया गया और घर में रहने का आदेश दिया गया। एक दिन, वह अपने भाई के साथ बाजार गई, लेकिन उसने चेहरे को पूरी तरह ढकने वाला बुर्का नहीं पहना था। तालिबान के एक गश्ती दल ने उसे रोका और नियम तोड़ने के लिए कोड़े मारने की सजा दी। मलालई को सार्वजनिक रूप से 10 कोड़े लगाए गए, और उसका भाई भी इसलिए पीटा गया क्योंकि वह उसकी "रक्षा" नहीं कर सका। इस घटना ने न केवल मलालई को शारीरिक रूप से चोट पहुँचाई, बल्कि उसे मानसिक रूप से भी तोड़ दिया। वह अब घर से बाहर निकलने से डरती है और अपनी जिंदगी को "कैद" की तरह देखती है। यह घटना उन हजारों अफगान महिलाओं की पीड़ा का प्रतीक है जो आज भी ऐसी क्रूरता का शिकार हो रही हैं।


वर्तमान चुनौतियाँ

शिक्षा पर रोक: मार्च 2025 तक, तालिबान ने लड़कियों की स्कूली शिक्षा पर प्रतिबंध जारी रखा है। यह अफगानिस्तान को दुनिया का एकमात्र ऐसा देश बनाता है जहां लड़कियों को औपचारिक शिक्षा से वंचित किया जा रहा है।

आर्थिक निर्भरता: रोजगार के अवसर खत्म होने से महिलाएं आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हो गई हैं। विधवाओं और अकेली माँओं की स्थिति विशेष रूप से दयनीय है।

स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: युद्ध और गरीबी के कारण स्वास्थ्य सुविधाएं पहले ही सीमित थीं, और अब महिलाओं के लिए इन तक पहुँच और भी मुश्किल हो गई है। मातृ मृत्यु दर यहाँ दुनिया में सबसे ऊँची है।

सामाजिक दबाव: रूढ़िवादी परंपराएं, जैसे बाल विवाह और जबरन शादी, अभी भी कई इलाकों में प्रचलित हैं।


उम्मीद की किरण

इन सबके बावजूद, अफगान महिलाएं हार नहीं मान रही हैं। कई महिलाएं चुपके से घरों में लड़कियों को पढ़ा रही हैं, ऑनलाइन कोर्स चला रही हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी आवाज उठा रही हैं। काबुल और अन्य शहरों में महिलाओं ने तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन किए, जो उनकी हिम्मत को दर्शाता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी अफगान महिलाओं के अधिकारों के लिए दबाव बना रहा है, हालाँकि इसका असर अभी सीमित है।


निष्कर्ष

अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति एक जटिल और दुखद कहानी है, जो संघर्ष, साहस और उम्मीद से भरी हुई है। मलालई जैसे उदाहरण हमें यह याद दिलाते हैं कि अत्याचार अभी भी जारी हैं, लेकिन इन महिलाओं का जज्बा भी कम नहीं हुआ है। यह देश तब तक सच्ची प्रगति नहीं कर सकता जब तक उसकी आधी आबादी को बराबरी का हक न मिले। हमें यह समझना होगा कि महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता किसी भी समाज की तरक्की की नींव होती है। क्या विश्व समुदाय और अफगान लोग मिलकर इस स्थिति को बदल पाएंगे? यह समय ही बताएगा।


अगर आपके पास इस विषय पर कोई विचार या सुझाव हैं, तो कृपया साझा करें। अफगान महिलाओं की कहानी हर किसी को प्रेरित और जागरूक करने वाली है।

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